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मिर्ज़ा ग़ालिब के 10 शेर जो दिल को छू जाते हैं!

यूँ तो मिर्ज़ा ग़ालिब की जुबांँ से निकली हुई हर बात, हर शब्द, हर मिसरा ही अपने आप में अलग ही मुक़ाम रखता है ऐसे में उनकी गज़लों के शेर में बेहतर और ख़राब चुनने की गुस्ताखी नहीं करना चाहते हैं हम, यहाँ बात है अपने नज़रिये की ग़ालिब के सभी शेर बेहतरीन हैं! हम बस यहाँ  अपनी पसंद के कुछ शेर की बात करेंगे जो शायद आप को भी बहुत ही पसंद होंगे!


ग़ालिब के 10 ऐसे शेर जो सीधे दिल में में उतरते हैं -

1.  था कुछ तो ख़ुदा था कुछ न होता तो ख़ुदा होता

     डुबोया मुझ को होने ने न होता मैं तो क्या होता


 2.  'ग़ालिब' बुरा न मान जो वाइज़ बुरा कहे

      ऐसा भी कोई है कि सब अच्छा कहें जिसे


3.   मेरी क़िस्मत में ग़म गर इतना था

       दिल भी या-रब कई दिए होते


4.   रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ाइल

      जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है


5.   खुलता किसी पे क्यूँ मिरे दिल का मोआमला

      शेरों के इंतिख़ाब ने रुस्वा किया मुझे

 

6.   रहिए अब ऐसी जगह चल कर जहाँ कोई न हो

      हम-सुख़न कोई न हो और हम-ज़बाँ कोई न हो


7.   कहूँ किस से मैं कि क्या है शब-ए-ग़म बुरी बला है

      मुझे क्या बुरा था मरना अगर एक बार होता


8.   मौत का एक दिन मुअय्यन है

      नींद क्यूँ रात भर नहीं आती


9.   इस सादगी पे कौन न मर जाए ऐ ख़ुदा

      लड़ते हैं और हाथ में तलवार भी नहीं


10.  बस-कि दुश्वार है हर काम का आसाँ होना

       आदमी को भी मयस्सर नहीं इंसाँ होना


ये हैं ग़ालिब के 10 ऐसे शेर जो ग़ालिब को हमेशा लोगों के ज़ेहन में ज़िंदा रखते हैं!


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