जौन एलिया की दिल को छू लेने वाली वो गज़लें, जिन गज़लों ने सुनने वालों को जौन का दीवाना बना कर ऱख दिया!पहली बार जिसने भी इन गज़लों को सुना मानो उसके कान और दिल इन्हीं गज़लों पर ठहर गए!
Jaun elia |
जौन एलिया की गज़लें
1. नया इक रिश्ता-
नया इक रिश्ता पैदा क्यूँ करें हम
बिछड़ना है तो झगड़ा क्यूँ करें हम
ख़मोशी से अदा हो रस्म-ए-दूरी
कोई हंगामा बरपा क्यूँ करें हम
ये काफ़ी है कि हम दुश्मन नहीं हैं
वफ़ा-दारी का दावा क्यूँ करें हम
वफ़ा इख़्लास क़ुर्बानी मोहब्बत
अब इन लफ़्ज़ों का पीछा क्यूँ करें हम
हमारी ही तमन्ना क्यूँ करो तुम
तुम्हारी ही तमन्ना क्यूँ करें हम
नहीं दुनिया को जब पर्वा हमारी
तो फिर दुनिया की पर्वा क्यूँ करें हम
ये बस्ती है मुसलामानों की बस्ती
यहाँ कार-ए-मसीहा क्यूँ करें हम
1. Naya ik rishta-
nayā ik rishta paida kyu karen ham
bichhaḌnā hai to jhagda kyu karen ham
Khamoshi se ada ho rasm-e-duri
koi hangama barpa kyu karen ham
ye kaafī hai ki ham dushman nahin hain
Wafadaari ka daawa kyu karen ham
Wafa ikhlash qurbaani mohabbat
ab in lafzon kā pichha kyu karen ham
hamari hi tamanna kyu karo tum
tumhari hi tamanna kyu karen ham
nahin duniya ko jab parva hamri
to phir duniya ki parva kyu karen ham
ye bastī hai musalmano ki basti
yahan kaar e masiha kyu karen ham
2.उम्र गुज़रेगी इम्तिहान में क्या -
उम्र गुज़रेगी इम्तिहान में क्या
दाग़ ही देंगे मुझ को दान में क्या
मेरी हर बात बे-असर ही रही
नक़्स है कुछ मिरे बयान में क्या
मुझ को तो कोई टोकता भी नहीं
यही होता है ख़ानदान में क्या
अपनी महरूमियाँ छुपाते हैं
हम ग़रीबों की आन-बान में क्या
ख़ुद को जाना जुदा ज़माने से
आ गया था मिरे गुमान में क्या
बोलते क्यूँ नहीं मिरे हक़ में
आबले पड़ गए ज़बान में क्या
ख़ामुशी कह रही है कान में क्या
आ रहा है मिरे गुमान में क्या
यूँ जो तकता है आसमान को तू
कोई रहता है आसमान में क्या
ये मुझे चैन क्यूँ नहीं पड़ता
एक ही शख़्स था जहान में क्या
2. Umra guzregi imtihaan me kya-
umr guzregī imtihan me kya
daag hi dnge mujh ko daan me kya
merī har baat be-asar hi rahi
naqs hai kuchh mere bayaan me kya
mujh ko to koi Tokta bhi nahi
yahi hota hai ḳhandan me kya
apnī mahrūmiyāñ chupaate hain
Hm garibo ki aan baan me kya
Khud ko jaan juda zamane se
aa gaya tha mere guman me kya
bolte kyu nahi mere haq me
aable pad gaye zabaan me kya
ḳhamohi kah rahi hai kaan me kya
aa raha hai mire guman me kya
yun jo takta hai asman ko tu
koi rahta hai aasmaan me kya
ye mujhe chain kyu nahi padta
ek hi shaḳhs tha jahaan me kya
3. ठीक है ख़ुद को हम बदलते हैं -
ठीक है ख़ुद को हम बदलते हैं
शुक्रिया मश्वरत का चलते हैं
हो रहा हूँ मैं किस तरह बरबाद
देखने वाले हाथ मलते हैं
है वो जान अब हर एक महफ़िल की
हम भी अब घर से कम निकलते हैं
क्या तकल्लुफ़ करें ये कहने में
जो भी ख़ुश है हम उस से जलते हैं
मैं उसी तरह तो बहलता हूँ
और सब जिस तरह बहलते हैं
है अजब फ़ैसले का सहरा भी
चल न पड़िए तो पाँव जलते हैं
3. Thik hai khud ko ham badalte hain-
Thiik hai khud ko ham badalte hain
shukriya mashvarat ka chalte hain
ho raha hu main kis tarah barbad
dekhne vaale haath malte hain
hai vo jaan ab har ek mahfil ki
ham bhi ab ghar se kam nikalte hain
kya takalluf karen ye kahne me
jo bhi khush hai ham us se jalte hain
main usi tarah to bahalta hu
aur sab jis tarah bahalte hain
hai ajab faisle ka sahra bhi
chal na padiye to paanv jalte hain
4. इक हुनर जो कर गया हूँ मैं -
इक हुनर है जो कर गया हूँ मैं
सब के दिल से उतर गया हूँ मैं
कैसे अपनी हँसी को ज़ब्त करूँ
सुन रहा हूँ कि घर गया हूँ मैं
क्या बताऊँ कि मर नहीं पाता
जीते-जी जब से मर गया हूँ मैं
अजब इल्ज़ाम हूँ ज़माने का
कि यहाँ सब के सर गया हूँ मैं
तुम से जानाँ मिला हूँ जिस दिन से
बे-तरह ख़ुद से डर गया हूँ मैं
4. Ik hunar jo kar gaya hoo main-
Ik hunar jo kar gaya hoo main
Sab ke dil se utar gaya hoo main
Kaise apni hansi ko zabt karoo
Sun raha hoo ki ghar gaya hoo main
Kya bataau ki mar nahi pata
Jeete ji jab se mar gaya hoo main
Azab ilzaam hoo zmaane ka
ki yahaan sab ke sar gaya hoo main
Tumse janaa mila hoo jis din se
Be tarah khud se dar gaya hoo main
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