मिर्ज़ा ग़ालिब"इस नाम को पूरी दुनिया में उर्दू शायरी पढ़ने, सुनने वाला जानता है और इनसे मोहब्बत करता है! हम मिर्ज़ा ग़ालिब की शायरी, ग़ज़ल के बारे में बहुत कुछ जानते हैं अब आइये हम जानते हैं ग़ालिब की ज़िंदगी से जुड़ा एक दिलचस्प किस्सा!
किस्सा कुछ यूँ है- एक बार मिर्ज़ा ग़ालिब किसी दोस्त के साथ बैठे हुए थे तभी उसके घर के सामने से कोई एक फ़क़ीर कुछ गाते हुए गुज़रा,दरअसल वो फ़क़ीर मिर्ज़ा ग़ालिब की ही ग़ज़ल का एक शेर गा रहा था शेर कुछ यूँ था -
ये ना थी हमारी किस्मत कि विसाल ए यार होता
अग़र और जीते रहते तो यही इंतज़ार होता !
दोस्त के साथ अपने घर के बाहर गलियों टहलने निकले तो थोड़ी दूर पहुँचते ही एक कोठे के पास से गुज़रते हुए उनको उसी ग़ज़ल का एक दूसरा शेर सुनाई पड़ता है जिसे कोई नाचने वाली गा रही थी, शेर कुछ यूँ था -
तेरे वादे पर जिए हम तो ये जान झूठ जाना
कि ख़ुशी से मर ना जाते अग़र ऐतबाऱ होता !
इसके बाद मिर्ज़ा ग़ालिब अपने दोस्त की देख़ते हुए बोले "जिस ग़ज़ल को गलियों में फ़क़ीर और कोठे पर तवायफ़ पर गाये उसे भला कौन मार सकता है!
क्या क़माल की बात कही ग़ालिब ने और उनके दोस्त उनकी तरफ़ देख कर थोड़ा मुस्कराये शायद वो इस बात को बेहतर समझ गए होंगे कि सच में ग़ालिब की ग़ज़ल कभी मरने वाली नहीं है!
0 Comments