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माँ पर कहे गए मुनव्वर राना के 10 शेर

 दोस्तों,मुनव्वर राना उर्दू शायरी की दुनिया के वो इकलौते शायर हैं जिन्होंने अपनी गज़लों में माँ को एक विशेष स्थान दिया है, ग़ज़ल और शायरी की सीमाओं को उन्होंने अपने हिसाब से तय किया है..एक ओर जहाँ दुनिया भर के शायरों ने अपने महबूब को दिमाग़ में रखकर इश्क़, मोहब्बत, हुस्न पर शायरी करते रहे वहीं मुनव्वर राना ने अपनी माँ को महबूब बनाकर शायरी और गज़लें लिखी और कही!


माँ पर कहे गए राना के शेर सुनकर लोग भावुक हो जाते हैं और कभी कभी तो राना साहब भी शेर पढ़ते पढ़ते भावुक हो जाया करते हैं!


माँ पर कहे गए मुनव्वर राना के 10 बेहतरीन शेर -


1. जब भी कश्ती मिरी सैलाब में आ जाती है

   माँ दुआ करती हुई ख़्वाब में आ जाती है


2. चलती फिरती हुई आँखों से अज़ाँ देखी है

    मैं ने जन्नत तो नहीं देखी है माँ देखी है


3. इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है

    माँ बहुत ग़ुस्से में होती है तो रो देती है


4. कल अपने-आप को देखा था माँ की आँखों में

    ये आईना हमें बूढ़ा नहीं बताता है


5.  बर्बाद कर दिया हमें परदेस ने मगर

    माँ सब से कह रही है कि बेटा मज़े में है


6. शहर के रस्ते हों चाहे गाँव की पगडंडियाँ

    माँ की उँगली थाम कर चलना बहुत अच्छा लगा


7.  माँ ख़्वाब में आ कर ये बता जाती है हर रोज़

     बोसीदा सी ओढ़ी हुई इस शाल में हम हैं


8.  निकलने ही नहीं देती हैं अश्कों को मिरी आँखें

     कि ये बच्चे हमेशा माँ की निगरानी में रहते हैं


9.  मैं ने कल शब चाहतों की सब किताबें फाड़ दें

     सिर्फ़ इक काग़ज़ पे लिक्खा लफ़्ज़-ए-माँ रहने दिया


10. ये ऐसा क़र्ज़ है जो मैं अदा कर ही नहीं सकता

      मैं जब तक घर न लौटूँ मेरी माँ सज्दे में रहती है






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